भाई दूज: भाई-बहन के प्रेम और स्नेह का त्योहार
भारत एक ऐसा देश है जहाँ हर त्योहार के पीछे एक विशेष सांस्कृतिक और धार्मिक महत्त्व छिपा होता है। भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को समर्पित एक ऐसा ही अनूठा पर्व है *भाई दूज, जिसे भारत के विभिन्न हिस्सों में हर्षोल्लास से मनाया जाता है। इस त्योहार को भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है जैसे कि **भैया दूज, *भाऊ बीज (महाराष्ट्र), भातृ द्वितीया (पश्चिम बंगाल), और यम द्वितीया। भाई दूज का उत्सव भाई-बहन के रिश्ते में प्रेम, स्नेह, और सुरक्षा के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व भाई-बहन के बीच के पवित्र बंधन को और भी मजबूत बनाने का अवसर प्रदान करता है।

भाई दूज का महत्त्व
भाई दूज का मुख्य उद्देश्य भाई और बहन के रिश्ते को सम्मान और सुरक्षा के साथ मनाना है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र और समृद्धि की कामना करती हैं, और भाई अपनी बहनों की रक्षा का वचन देते हैं। भाई दूज भाई-बहन के बीच के अटूट प्रेम और बंधन का प्रतीक है।
इस त्योहार के साथ भाई-बहन के बीच विश्वास, समर्पण और पारिवारिक स्नेह की भावना जुड़ी होती है। यह रिश्ता न केवल पारिवारिक मूल्यों को स्थापित करता है बल्कि एक-दूसरे के प्रति कर्तव्यनिष्ठा और सहयोग को भी प्रोत्साहित करता है।
भाई दूज की पौराणिक कथा
भाई दूज के साथ कई पौराणिक कथाएँ जुड़ी हैं। सबसे प्रमुख कथा भगवान यमराज और उनकी बहन यमुनाजी से जुड़ी है।
यमराज और यमुनाजी की कथा:
कहा जाता है कि यमराज, जो मृत्यु के देवता हैं, अपनी बहन यमुनाजी से मिलने के लिए बहुत व्यस्त रहते थे। यमुनाजी ने कई बार यमराज को अपने घर आमंत्रित किया, लेकिन वे काम की व्यस्तता के कारण नहीं जा सके। एक दिन यमराज ने निर्णय लिया कि वह अपनी बहन के घर जाकर उसका निमंत्रण स्वीकार करेंगे। जब यमराज अपनी बहन यमुनाजी के घर पहुंचे, तो यमुनाजी ने उनका हर्षोल्लास से स्वागत किया। उन्होंने अपने भाई के लिए स्वादिष्ट भोजन बनाया और प्यार से उन्हें तिलक लगाया। यमराज ने बहन के स्नेह से प्रसन्न होकर उसे वरदान मांगने के लिए कहा।
यमुनाजी ने अपने भाई से यह वरदान माँगा कि हर वर्ष इस दिन वह अपनी बहन से मिलने आए और जो भी बहन इस दिन अपने भाई को तिलक करे, उसका भाई दीर्घायु हो और उसे किसी प्रकार का भय न हो। यमराज ने यमुनाजी की यह इच्छा पूरी की और इस दिन को यम द्वितीया के रूप में मनाया जाने लगा।
भगवान कृष्ण और सुभद्रा की कथा:
एक अन्य प्रसिद्ध कथा के अनुसार, जब भगवान कृष्ण ने राक्षस नरकासुर का वध किया था और अपने राज्य लौटे, तो उनकी बहन सुभद्रा ने उनका स्वागत किया। सुभद्रा ने कृष्ण को तिलक लगाया और उनकी लंबी उम्र और समृद्धि की कामना की। इस घटना के बाद, भाई दूज को मनाने की परंपरा और अधिक प्रचलित हो गई।
भाई दूज मनाने की विधि
भाई दूज का त्योहार कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है, जो दिवाली के दो दिन बाद आता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों को तिलक करती हैं और उनकी लंबी उम्र और सुरक्षा की कामना करती हैं। इस पूजा की विधि इस प्रकार है:
- स्नान और पूजा की तैयारी: भाई दूज के दिन बहनें प्रातः स्नान करके पूजा की तैयारी करती हैं। पूजा के लिए थाली में तिलक लगाने के लिए रोली, चावल, मिठाई, दीपक, और नारियल रखा जाता है।
- तिलक और आरती: बहनें अपने भाई को आसन पर बैठाती हैं और रोली और चावल का तिलक उनके माथे पर लगाती हैं। इसके बाद वे अपने भाई की आरती उतारती हैं और मिठाई खिलाती हैं।
- प्रार्थना: बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र, समृद्धि और सुरक्षा की प्रार्थना करती हैं। इसके बदले में, भाई अपनी बहनों को उपहार देते हैं और उनकी रक्षा का वचन देते हैं।
- भोजन: कई परिवारों में इस दिन विशेष भोजन तैयार किया जाता है, जिसे भाई-बहन एक साथ मिलकर खाते हैं।
भाई दूज के क्षेत्रीय रूप
भारत के विभिन्न हिस्सों में भाई दूज को अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। हालाँकि इसका मुख्य भावनात्मक पक्ष भाई-बहन के बीच प्यार और स्नेह से जुड़ा हुआ है, लेकिन इसके मनाने के तौर-तरीके भौगोलिक और सांस्कृतिक भिन्नताओं के आधार पर भिन्न होते हैं।
- उत्तर भारत: उत्तर भारत में भाई दूज को पारंपरिक रूप से मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों को तिलक लगाती हैं और उनके सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। भाई अपनी बहन को उपहार देकर उसकी रक्षा का वचन देते हैं।
- *महाराष्ट्र और गुजरात: यहाँ इसे *भाऊ बीज के नाम से जाना जाता है। इस दिन बहनें भाइयों को तिलक लगाती हैं और विशेष व्यंजनों से उनका स्वागत करती हैं। भाई भी बहनों को उपहार देकर अपना स्नेह प्रकट करते हैं।
- *बंगाल: बंगाल में भाई दूज को *भाई फोंटा के नाम से जाना जाता है। यहाँ बहनें अपने भाइयों के माथे पर चंदन या कुमकुम से फोंटा लगाती हैं और भाइयों की दीर्घायु की प्रार्थना करती हैं।
- *नेपाल: नेपाल में इस त्योहार को *भाई टीका के रूप में मनाया जाता है। यह नेपाल के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यहाँ बहनें भाइयों के माथे पर तिलक लगाकर उनकी लंबी उम्र और समृद्धि की कामना करती हैं।
आधुनिक समय में भाई दूज का महत्त्व
आज के समय में भाई दूज का महत्त्व और भी अधिक बढ़ गया है, जब लोग अक्सर अपने व्यस्त जीवन में परिवार के लिए समय नहीं निकाल पाते। भाई दूज का पर्व हमें अपने परिवार और भाई-बहन के रिश्ते की अहमियत को समझने और उसे संजोने का अवसर प्रदान करता है।
यह त्योहार न केवल पारिवारिक संबंधों को मजबूत करता है, बल्कि समाज में प्यार, सहयोग और सुरक्षा की भावना को भी प्रोत्साहित करता है। भाई दूज की परंपराएं हमें यह सिखाती हैं कि चाहे कितनी भी व्यस्तताएँ हों, भाई-बहन का रिश्ता हमेशा खास और अमूल्य होता है।
निष्कर्ष
भाई दूज भाई-बहन के अटूट प्रेम और रिश्ते का प्रतीक है। यह त्योहार न केवल हमें अपने परिवार के साथ समय बिताने का मौका देता है, बल्कि हमें यह भी सिखाता है कि प्यार, सुरक्षा और सहयोग से बेहतर कोई उपहार नहीं होता। भाई दूज का पर्व हमें अपने रिश्तों की कदर करने और उन्हें सम्मान देने की प्रेरणा देता है।
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