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जहां ठहरा दोगे तुम मुझे मै वहीं ठहर जाऊंगा
तुम्हारा ही तो हूं मैं तुम्हारे अलावा कहां जाऊंगा…!!

यूं ही नहीं हूं राहें इश्क का मुसाफिर ग़ालिब,
बहुत से इल्ज़ामात है मुझ में जो भुलाए नहीं जाते…..
मैं जो चाहूं तो देख सकता हूं तेरे अलावा भी कोई,
पर ये आँखें वफादार है दगा नहीं करती…..

ख़त्म हो रही है नादानियां मेरी मै समझदार बन रहा हूँ
कुछ न मिलने पर रोता था मैं सब कुछ खो कर हंस रहा हूँ
मोहब्बत की अमानत है महबूब की तस्वीरें
इश्क में इसे लोग वर्षों सम्भाल कर रखते हैं…

है कोई शख्स जो मेरी बात नहीं सुनता
मैं चलता हूं तो मेरे साथ नहीं चलता
एक उसके प्यार की कैद ही काफी है सनम
वो जंजीर हिला देता है मगर आजाद नहीं करता…
अब न तो कोई शौक, न तमन्ना, न कोई आरज़ू बाकी है
अब तो बस जिंदगी गुजर जाए इतना ही काफी है…

दिल से प्यार किया था दिल से निभाएंगे
जब तक है जान बस तुम्हे ही चाहेंगे…
हसरत है कि उनको करीब से देखें
करीब हो तो आँखें उठाई नहीं जाती

क्या सुनाऊं हाल ए दास्तां यारो
उसके शहर की वफ़ा मशहूर थी
और वो खुद बेवफ़ा निकली…..
प्रेम में हवस वाले को मिलती है सफलता
इश्क वाले तो बस शायरी करते रह जाते है..!!
अब नहीं करते है तुमसे कोई आरज़ू
बस मिल जाओ किसी राह पर तो मुस्कुरा देना
भले ही हर बार की तरह हमें फिर ठुकरा देना..!!
दिमाग पर जोर लगाकर गिनते हो गलतियां मेरी
कभी दिल पर हाथ रखकर पूछना कसूर किसका था……
किसे खबर थी वो ऐसे भी खफा हो जायेगा
ज्यादा चाहेंगे उसे तो बेवफा हो जायेगा…
कौन कहता है हम तबाह नही है मेरी बर्बादी का कोई गवाह नही है
सब देखते है मुझे मुस्कुराते हुए क्योंकि रोने के लिए कोई जगह नही है….
मुझे वहां ले जाओ जहां मैं तुम्हारे मिलने से पहले था और फिर मुझे छोड़ दो
मेरा सब कुछ लेलो ये मोहब्बत के वकीलों
बस मुझे उसकी याद की कैद से रिहाई चाहिए

यहां खुद से मिले जमाना हो गया
और लोग कहते है हमे भूल गये
तुम आसान समझते हो उम्मीदों का टूट जाना
हमसे पूछो सब कुछ पाकर कुछ न पाना
मुस्कुराते हुए आंसू निकल आएंगे कभी वक्त के हाथों तमाचा खाना..
तरस गए हम थोड़ी सी वफ़ा के लिए
अभी उम्र भी कम पड़ने लगी है इश्क में सजा के लिए

शिकायत है मन में लेकिन करते नहीं हैं
जितना हम उन पर मरते है वो कभी मरते नहीं है
कहने को तो प्यार करते है हमसे लेकिन बात कभी करते नहीं है..!!
“रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ,
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ।”
मोहब्बत सिखा कर जुदा हो गया न सोचा न समझा खफा हो गया
दुनियां में किसको हम अपना कहे जो अपना था वही बेवफा हो गया

मुझसे बिछड़ कर वो भी कहाँ अब पहले जैसी है,
फीके पड़ गए हैं अब रंग सब बहारों के।
समन्दर में ले जा कर फरेब न करना फ़राज़
तू कहे तो किनारे पर डूब जाऊं मैं….

वो मोहब्बत भी तुम्हारी थी नफरत भी तुम्हारी थी,
हम अपनी वफ़ा का इंसाफ किससे माँगते..
वो शहर भी तुम्हारा था वो अदालत भी तुम्हारी थी..!!
हम समझदार इतने की उनका झूठ पकड़ लेते है
और उनके दीवाने भी इतने की फिर भी यकीन कर लेते है..!!
मुंह मोड़ लिया हमने हर चीज से उसके जाने के बाद
वो शख्स मेरी जिंदगी की आखिरी पसंद था..!!
